कविता :- राही..!

राही! क्यों तुम ठहर गया ? 
अभी रुकना तेरा काम नहीं, 
क्षणिक हार से क्यों घबराना ? 
अब मंज़िल ज्यादा दूर नहीं |

समय गुजरता जाता है, 
इसमें किसी का जोर कहाँ ? 
जो मेहनत करते हैं यहाँ, 
होते हैं वह कमजोर कहाँ ? 

धावक है तू, क्यों लड़खड़ा रहा ? 
तुम- सा वीर ऊर्जस्वित कहाँ ? 
पगडंडी वही है कांटों वाली, 
अब रुकना तुम्हें मंजूर कहाँ ? 

तू नदी अविरल धारा है ? 
अभी ठहरना है तुम्हें मना, 
अवश्य मंजिल तुम्हें मिलेगा ? 
पथ की कर पहचान यहाँ ? 

नए जुनून से आगे बढ़ना, 
आत्मविश्वास को न डिगाना, 
हाॅं ! जीवन की नीरवता में , 
एक दिन खिलेंगे फूल यहाँ |


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