कविता :- हृदय की चोट..!
चाहे जितना जोर लगा लो,
पूरब - पश्चिम एक कर डालो,
पर कभी ऐसा हुआ होगा,
कि अंधेरे ने सूर्य को उगने न दिया होगा ?
चाहे जितना जोर लगा लो,
पूरी फुलवारी को उजाड़ डालो,
पर कभी ऐसा हुआ होगा,
कि हवा ने सुगंध को फैलने न दिया होगा ?
चाहे जितना जोर लगा लो,
उड़ते परिंदों को घायल कर डालो,
पर कभी ऐसा हुआ होगा,
कि परिंदों ने उड़ना छोड़ दिया होगा ?
चाहे जितना जोर लगा लो,
आत्मसम्मान को चोट कर डालो,
पर कभी ऐसा हुआ होगा,
कि अमित लड़खड़ा के संभला न होगा ?
चाहे जितना जोर लगा लो,
शब्द वाण से भेद कर डालो,
पर कभी ऐसा भी हुआ होगा,
कि हृदय की चोट स्नेह से न भरा होगा
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